Share क्या हैं यह जानने के बाद हम share कितने प्रकार के होते हैं (types of share in hindi) इसके बारे मे जानकारी प्राप्त करने वाले हैं जिससे आपको शेयर को समझने मे किसी प्रकार का सम्भ्रम ना रहे.
हालांकि शेयर मार्केट मे कोई कंपनी का मालिक या संस्थान अपने कंपनी मे इन्वेस्ट को बढ़ने के लिए वह निवेशकों के लिए शेयर market मे शेयर जारी करती हैं, जिससे निवेशक उस कंपनी के कुछ शेयर खरीदकर का भागधारक यानी शेयर होल्डर बन जाता हैं और लोगो के इन्वेस्टमेंट की वजह से कंपनी की आर्थिक value बढ़ जाती हैं और कंपनी को मुनाफा होने पर निवेशकों (शेयर खरदीने वाले) को शेयर के करंट value के अनुसार लाभांश प्रदान करती हैं.
इन्वेस्टमेंट यानी एक रिस्क होता हैं क्यों की यदि कंपनी घाटे मे चल रही हैं और आपने उसके शेयर ख़रीदे हुए हैं तो कंपनी के शेयर्स निचे गिर जाते हैं जिससे आपने ख़रीदे हुए शेयर की value भी कम हो जाती हैं.
Share 100 रूपये से लेकर करोड़ो रूपये तक के होते हैं और इसमें यह share खरीदने वाले पर डिपेंड करता हैं की वह कितने रूपये किसी कंपनी मे इन्वेस्ट करना चाहता हैं. क्यों की जितनी बड़ी अमाउंट होती है उतना ही बड़ा इसमें रिस्क होता है. इसलिए शेयर खरीदने से पहले आपको शेयर विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए की आपको कहा इन्वेस्ट करना चाहिए और कितना करना चाहिए, जिससे आप अपने पैसे डुबाने से बच सको.
इस आर्टिकल मे हम share के प्रकार (types of share) के बारे मे जानेंगे, इसलिए अगर आप share market मे पैसे लगाकर मुनाफा कामना चाहते हैं तो आपको इस टर्म के बारे मे जरूर जानना चाहिए.
इक्विटी शेयर को आम भाषा में केवल ‘शेयर’ कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के शेयरों की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं। अतः इनके प्रकार को समझना आवश्यक है, ताकि निवेशक अपनी जरूरत तथा विवेक के अनुसार उनका चयन कर सके।
भारत में निवेशकों को दो प्रकार के शेयर विकल्प उपलब्ध हैं-
- इक्विटी शेयर
- प्रीफरेंस शेयर
1. इक्विटी शेयर होल्डर या साधारण शेयर (ऑर्डिनरी शेयर)
प्राइमरी तथा सेकंडरी मार्केट से निवेशक जो शेयर हासिल करता है, वह ‘साधारण शेयर’ कहलाता है।
इस प्रकार का शेयरधारक कंपनी का आंशिक हिस्सेदार होता है और कंपनी के नफे-नुकसान से जुड़ा रहता है। साधारण शेयरधारक ही इक्विटी शेयर होल्डर होते हैं। और शेयरों की संख्या के अनुपात में कंपनी पर इनका मालिकाना अधिकार होता है।
इसमें लाभांश निवेशकों को कितना दिया जाये यह तय नहीं होता हैं, क्यों की जैसा की मैंने आपको कहा इसमें share होल्डर्स या निवेशक (share खरीदने वाले) को मालिक माना जाता हैं.
उदाहरण के लिए किसी कंपनी ने अपने 100 शेयर्स मे से 50 प्रतिशत share को बिक्री के लिए जारी किया और किसी व्यक्ति ने उन 50 प्रतिशत shares को खरीद लिया, तो वो व्यक्ति उस कंपनी मे 50% का हिस्सेदार यानी मालिक बन जाता हैं.
कंपनी की नीति बनानेवाली जनरल मीटिंग में इन्हें वोट देने का अधिकार होता है। इसी प्रकार, ये कंपनी से जुड़े रिस्क तथा नफा-नुकसान के हिस्सेदार भी होते हैं।
यदि कंपनी अपना व्यवसाय पूर्ण रूप से समाप्त करते है यानी कंपनी बंद करते हैं या बेच देते हैं, तब कंपनी अपनी सारी देनदारी चुकता करने के बाद बची हुई पूँजी संपत्ति को इन साधारण शेयरधारकों को उनकी शेयर संख्या के अनुपात से वितरित करती है।
इसमें यदि कंपनी को ज्यादा प्रॉफिट होता हैं तब सबसे ज्यादा फायदा equity होल्डर्स को होता हैं क्यों की वे उनका कंपनी मे मालिकाना हक़ होता हैं. और उसके विपरीत कंपनी डूब जाने पर सबसे बड़ा नुकसान भी equity share होल्डर्स का ही होता हैं.
2. प्रिफरेंस शेयर (तरजीह शेयर)
साधारण शेयर के विपरीत कंपनी चुनिंदा निवेशकों, प्रोमोटर और दोस्ताना निवेशकों को नीतिगत रूप से प्रिफरेंस शेयर (प्रेफरेंस आधार पर) जारी करती है।
आसान भाषा में कहे तो प्रेफरेंस शेयर वो शेयर होता है जिसमे कंपनी डूब जाने पर या घाटे में जाने पर अथवा लाभांश प्राप्त करने पर निवेशकों को उनका तय किया गया लाभांश या मूलधन वापस मिल जाता है.
इन प्रिफरेंस शेयरों की कीमत साधारण शेयर की मौजूदा कीमत से अलग भी हो सकती है।
- साधारण शेयर के विपरीत प्रिफरेंस शेयरधारकों को वोट देने का अधिकार नहीं होता।
- प्रिफरेंस शेयरधारकों को प्रतिवर्ष निश्चित मात्रा में लाभांश (डिविडेंड) मिलता है।
- प्रिफरेंस शेयरधारक साधारण शेयरधारक की अपेक्षा अधिक सुरक्षित होते हैं, क्योंकि जब कभी कंपनी बंद करने की स्थिति आती है तो पूँजी चुकाने के मामले में प्रिफरेंस शेयरधारकों को साधारण शेयरधारकों से अधिक तरजीह दी जाती है।
- कंपनी अपनी नीति के अनुसार प्रिफरेंस शेयरों को आंशिक अथवा पूर्ण रूप से साधारण शेयर में परिवर्तित भी कर सकती है।
- जब कोई कंपनी बहुत अच्छा बिजनेस कर रही है तो उसके साधारण शेयरधारक को ज्यादा फायदा होता है।
प्रिफरेंस शेयरधारक को लाभ में से सबसे पहले हिस्सा मिलता है; लेकिन इन्हें कंपनी का हिस्सेदार नहीं माना जाता है।
लाभ के आधार पर प्रिफरेंस शेयर तीन तरह के होते हैं—
यदि कंपनी किसी कारणवश पहले वर्ष लाभ नहीं कमाती है और इसकी जगह दूसरे वर्ष में लाभ कमाती है तो इस स्थिति में निवेशक दोनों वर्ष में लाभ प्राप्त करने का दावा नहीं कर सकता है।
यदि कंपनी किसी वजह से पहले वर्ष लाभ नहीं कमाती और दूसरे वर्ष में लाभ की स्थिति में आती है तो इस स्थिति में निवेशक दोनों वर्ष लाभ प्राप्त करने का दावा कर सकता है।
इस तरह के शेयरधारक को उसकी पूँजी निश्चित समय के बाद लाभांश (डिविडेंड) के साथ लौटा दी जाती है। इस प्रकार के शेयरधारक का कंपनी से जुड़ाव पूरी तरह अल्पकालिक होता है और कंपनी की इच्छा पर निर्भर करता है।
इस प्रकार के शेयर निश्चित अवधि के पश्चात् इसी कंपनी के किसी अन्य वित्तीय इंट्रूमेंट में बदल दिए जाते हैं।
इसके अलावा एक और शेयर का प्रकार है जो मुख्य तौर पर नहीं गिना जाता।
3. DVR (डी व्ही आर) शेयर
DVR का फुल फॉर्म Differential Voting Rights शेयर है जो इक्विटी और प्रेफरेंस से अलग होता है।
इसमें जो निवेशक या इन्वेस्टर कंपनी के शेयर को खरीदता है वो इक्विटी शेयर होल्डर्स के मीटिंग में वोटिंग कर पाता। हलाकि ऐसा कही लिखा हुआ नहीं है, क्यों की DVR शेयर होल्डर्स को भी वोटिंग राइट्स मिलते है लेकिन वह सुनिश्चित होते है.
इसमें वोटिंग राइट्स प्राप्त करने के लिए मुख्य भागधारको की अनुमति लेनी पड़ती है तभी DVR शेयर होल्डर इसमें वोटिंग कर पाता है।
इसके अलावा यदि आप share खरीदना चाहते है और आपको Share क्या हैं इसके बारे मे जानकारी नहीं हैं, तो आप निचे दी गयी link पर जाकर आर्टिकल को पढ़ सकते है-
आपने क्या सीखा
इस आर्टिकल में आपने शेयर क्या है और उसके सभी प्रकार के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की है।
मुझे उम्मीद है आपको यह आर्टिकल हेल्पफुल साबित हुआ होगा और आपको इसकी पर्याप्त जानकारी मिल गयी होगी।
यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे और अगर आप सोशल मीडिया से जुड़े हुए है तो वहा पर भी इस आर्टिकल के बारे में लोगो को बताये जिससे सभी Share के कितने प्रकार होते है इसके बारे में जान सके।
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